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GHAZAL =Jise bhi hamne shabista ka razdaar kiya.

ग़ज़ल 09 जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया                   जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया उसी ने ढोल बजा राज़ आशक़ार किया//1 किसी को इश्क़ में हासिल हुए मुकाम बहुत किसी को तन की हवस ने गुनाहगार किया//2 मना न यार ख़ुशामद से या क़सम से फिर कि छेड़ में जो ख़फ़ा हमने एक बार किया//3 निज़ामे दह्र की ख़ातिर ख़ुदा ने भी यारों कोई ग़रीब रखा कोई मालदार किया//4 इसी ख़याल से सहता रहूं दुखों को मैं बुरा किया किसी ने जो यहां पे प्यार किया//5 स्वरचित: AMIR HUSAIN BAREILLY (UTTAR PRADESH)

एक मतला एक शेर

एक मतला एक शेर हम कहानी तुम्हें सुनाते क्या नींद से यकबयक जगाते क्या//1 राहवर के यहां दिवाली थी शहर में दीप जगमगाते क्या//2

ज़िहाफ़: तय्य (طیی)

                      ज़िहाफ़: तय्य (طیی)                                               तय्य (طیی) उस ज़िहाफ़ को कहते हैं जो रुक्न कै चौथे स्थान के हर्फ़े साकिन को गिराने के लिये लगाया जाता है चौथे स्थान पर साकिन उन अरकान में आता है जिनके प्रारम्भ में दो असबाबे ख़फ़ीफ़ लगातार आते हैं।जैसे :- मस तफ़ इ लुन(مستفعلن) में मस(مس)और तफ़(تف) लगातार दो असबाबे ख़फ़ीफ़ आ रहे हैं तो ऐसी सूरत में तफ़ (تف) के फ़े(ف) को गिराने का काम करेगा।      निम्नलिखित अरकान के प्रारम्भ में दो असबाबे ख़फ़ीफ़ लगातार आते हैं :- मस तफ़ इ लुन(مستفعلن) मफ़ ऊ ला तु(مفعولات)    अगर रुक्न  मस तफ़ इ लुन(مستفعلن) के दूसरे सबबे  ख़फ़ीफ़ के तफ़ (تف) में से फ़े(ف) को गिरा दें तो शेष बचता है मस त इ लुन [2112] (مستعلن)इसे मुफ़ त इ लुन [2112](مفتعلن)से बदल लिया।    अगर रुक्न मफ़ ऊ ला तु(مفعولات)के दूसरे सबबे  ख़फ़ीफ़ के ऊ(عو)के वाव(و) को गिरा दें तो शेष बचता है मफ़ इ ला तु[2121](مفعلات) इसे फ़ा इ ला तु[2121](فاعلات) से बदल लिया।     मुज़ाहिफ़ को मुतव्वी(مطووی) कहते हैं।   नोट-फ़ा इ ला तु[2121](فاعلات)में तु(ت)मुतहर्रिक है।

ज़िहाफ़= ख़ब्न (خبن)

                   ज़िहाफ़=  ख़ब्न (خبن)      ख़ब्न उस ज़िहाफ़ को कहते हैं जो रुक्न के पहले सबबे ख़फ़ीफ़ के साकिन को गिराता है।    निम्नलिखित अरकान में सबबे ख़फ़ीफ़ पहले आता है:-                                                                  (1) فاعلن(फ़ा इ लुन)[ 212]                                              (2)فاعلاتن(फ़ा इ ला तुन)[ 2122]                                    (3)مستفعلن(मस तफ़ इ लुन)[ 2212]                 (4)مفعولات(मफ़ ऊ ला तु)[ 2212]                                                                      فاعلن(फ़ा इ लुन)के فا (फ़ा) में से हम ا (अलिफ़) गिरा दें तो शेष बचता है ف (फ़े) तो हमें नया रुक्न प्राप्त हुआ فعلن (फ़इलुन) यानि हमने रुक्न के पहले सबबे ख़फ़ीफ़ का साकिन गिरा दिया है।     और यह साकिन  रुक्न के दूसरे स्थान पर आता है इसे हम निम्नलिखित उद्हारण से  समझ सकते हैं  रुक्न فاعلن (फ़ा इ लुन)में :-                                                                   ف (फ़े)पहले स्थान पर है     (मुतहर्रिक़ )                                    ا(अलिफ़)दूसरे स्थान पर है   (

GHAZAL=उम्र भर यार से बस हाथ छुड़ाया न गया

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                     ग़ज़ल                        08 GHAZAL=उम्र भर यार से बस हाथ छुड़ाया न गया उम्र भर यार से बस हाथ छुड़ाया न गया इसलिये और कहीं पे जी लगाया न गया//1 पेट की आग बुझाने के लिये  हम से कभी। भूल कर शाम को भी रात बताया न गया।।//2 काम तो हम  भी  बुरे  बक़्त  में    उनके आये। बस कभी हम से बो अहसान जताया न गया।।//3 दिल किसी गुल की तरह आप मसल कर न कहें हम से तो कोई किसी तौर सताया न गया//4

GHAZAL=दुनिया के किसी दर्द से दो चार नहीं हूं

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                    ग़ज़ल                      07 दुनिया के किसी दर्द से दो चार नहीं हूं दुनिया के किसी दर्द से दो चार नहीं हूं जब से मैं किसी तौर तेरा यार नहीं हूं//1 इन्सान हूं इन्सान से बरताब भी बरतो गुज़री हुई तारीख़ का अख़बार नहीं हूं//2 मख़्लूक़ सताने से मुझे बाज़ जरा आ दरबार में फ़रियाद से लाचार नहीं हूं//3 इस जीस्त की ख़ातिर तेरा दीदार ग़िज़ा है सूरत का तलबगार हूं बीमार नहीं हूं//4

GHAZAL=मुफ़्त में क्या किया हासिल है तजूर्बा हमने

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                  ग़ज़ल   मुफ़्त में क्या किया हासिल है तजूर्बा हमने                       ग़ज़ल                        06 मुफ़्त में क्या! किया हासिल है तजुर्बा हमने खूब लोगो पे लुटाया है असासा हमने//1 झेल हम तब लें तेरे खार बिना शिकबा हम जब तेरे पास रखा रहन हो रूतबा हमने//2 यक ब यक ही बअसर संगदिलों तक में भी लौ उठी जब कभी साज उठाया हमने//3 तारे गिन गिन के शवेहिज्रां गुज़ारी तन्हा दिलरूबा देख लिया तेरा भी वादा हमने//4

GHAZAL=अपनी बैचेनियों में किसे मैं पुकारता।

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                  ग़ज़ल                     05 GHAZAL= अपनी बैचेनियों में किसे मैं पुकारता। अपनी बैचेनियों में किसे मैं पुकारता। हां इसलिए मैं तुमसे रहा खेल हारता। गर बक़्त साथ होता बड़े इत्मिनान से । मैं मुन्तशिर ये केश तुम्हारे संवारता।। रंजीदगी गले में पहन हार की तरह । गुज़रा हूं ज़िन्दगी से जवानी गुजारता।। अंजाम से बेफ़िक्र मेरा इश्क़ लो मुझे। आंखों की झील में है डुबोता उभारता।। मुन्तशिर= बिखरी हुई रंजीदगी= दुख

GHAZAL-बे सबब हाजतें ठीक लगतीं नहीं

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                  ग़ज़ल                     04   बे सबब हाजतें ठीक लगतीं नहीं          बे सबब हाजतें ठीक लगतीं नहीं। बेहमीयत लतें ठीक लगतीं नहीं।। कुछ मरासिम बतन से भी यारो रखो। मुल्क से फ़ुरकतें ठीक लगतीं नहीं।। क्यों है हर शख्स दिलगीर इस शहर में। लोगो की तबियतें ठीक लगतीं नहीं।। दिल भुलाया उसे जो हसीं ख़ास थी। बस यही आदतें ठीक लगतीं नहीं।। हमनशीं तेरी ये बेहया बेवफ़ा । बेमजा चाहतें ठीक लगतीं नहीं।। बेहमीयत=निर्लज्ज मरासिस=संबंध हाजत=जरूरत

GHAZAL-जहां की ऐसी मुझे चाहिये बहार नहीं।

             ग़ज़ल                03  जहां की ऐसी मुझे चाहिये बहार नहीं। जहां की ऐसी मुझे चाहिये बहार नहीं। किसी भी तौर मिले जिससे जब करार नहीं।। रगो की कैद के भीतर लहू रहे न अबस। इसी बजह से चखी नान दाग़दार नहीं।। सुरूर जीत का है लाज़िमी उन्हीं के लिये। नबर्द में जो कभी थे फ़रेबकार नहीं।। निकल सके तो निकालूं बदन से लहजे में। अक़ूबते ग़मे हस्ती है कोई खार नहीं।।

GHAZAL-किसी का दिल दुखाके पाप कर गया यारो।

                      ग़ज़ल 02 किसी का दिल दुखाके पाप कर गया यारो। किसी का दिल दुखाके पाप कर गया यारो। मै ख़ुद ही अपनी नज़र से उतर गया यारो।। फ़िराक़ का कभी हमदर्द था जिसे समझा। बही रगो में मेरी दर्द भर गया यारो।। गले लगाना भी अपनो को दूर की है सोच। करीब जाने से भी मैं तो डर गया यारो।।

GHAZAL- कहीं पे ठहरना कहीं से गुज़रना।

               ग़ज़ल                 01 कहीं पे ठहरना कहीं से गुज़रना। कहीं पे ठहरना कहीं से गुज़रना। मगर मन्ज़िलें सब मुकम्मल ही करना।। सज़ा ख़ुदकुशी की बड़ी सख़्त पायी। गया ज़िन्दगी से हुआ ख़ाक मरना।। जमा क्या करोगे इन्हें शीशियों में। कि है ख़ुशबुओं का मुकद्दर बिखरना। इलाही बुरा क्यों लगे दुश्मनों को। सुबह शाम मेरे शहर का संवरना।। कि पामाल करके सभी बन्दिशों को। नदी को समन्दर में अब है उतरना।। https://youtu.be/4n2V1NvCIWs

RUBAI-है ताड़ रही कब से निगाहे सय्याद।

                 रूबाई - है ताड़ रही कब से निगाहे सय्याद। है ताड़ रही कब से निगाहे सय्याद। बो घोसले में फिर भी बैठी है शाद ।। रहके भी निशाने की पकड़ में बुलबुल।।। क्यों ख़ुद को समझती है चमन में आज़ाद।।।।

दोहे

                         दोहे                           06 अजी भरा जल नांव में लाठी की दो पोर। फिर भी अपने साब जी नचा रहे हैं मोर।।                           07 काल चक्र रहता नहीं एक जगह बस ठौर। काली शब के बाद फिर आये उजली भोर।।                           08 गूंज रहा है आह!का कोलाहल सब ओर। फिर भी पत्थर के जिगर मारे नहीं हिलोर।।                           09 मजलूमों पे जुल्म का करोगे कब तक जोर। बस अपने तय बक़्त पर ख़त्म हुए सब दौर।।                             10           ‌  हुजूर   पूछे   है  धरा  पूछे  है   आकाश। अंधियारों के हाथ क्यों बेच दिया प्रकाश।।                                              ‌

कुन्डालिया

                             कुन्डालिया पैदल ही जो चल दिये सर पे रख के भार। थोड़ा उनका भी जरा हुजूर करो बिचार।। हुजूर करो बिचार छोड़ बातों का लच्छा। देख देश का हाल करो अब तो कुछ  अच्छा।। फ़ाको ने इस बक़्त बनाया इनको बैकल। सड़कों पे बेहाल चल रहे हैं जो पैदल।।

DOHA

                     दोहे                            01 गली गली जन क्यों फिरें करते धन की खोज। धन की अपार चाह में कष्ट मिलें नित रोज।।                             02 कदम कदम पे बस करे अपना खूब बखान। कोई नहीं जमीन पे नेता सा इन्सान                           03 पीछे पर निंदा करें सामने में गुणगान। चापलूस ने जन्म से पायी अजब जुबान।।                            04 लाॅकडाउन में क्या किया तूने वक्त फरेब। काम धाम सब छीन कर खाली कर दी जेब।।                            05 सर गठरी का बोझ है दूर बड़ा है गाँव। पैदल चल चल धूप में जलते मेरे पाँव।।

Ek MATLA EK SHER -बाग़ में हैं बागबां क्या..........

Ek MATLA EK SHER -बाग़ में हैं बागबां क्या.......... बाग़ में हैं बागबां क्या गुल ग़ज़ब के। पत्थरों में भी उठे अरमां तलब के।। हुस्न का दरिया बड़ा ही जोश पे है। हसरतें होंगी नहीं महरूम अब के।।

EK MATLA EK SHER -बह समझ ले ख़ुदी में जो मगरूर है।

Ek MATLA EK SHAR  बह समझ ले ख़ुदी में जो मगरूर है। बह समझ ले ख़ुदी में जो मगरूर है। आह! के सामने हर किला चूर है।। फ़क्त कुछ देर हैं टिमटिमाते दिये। और फिर रात की सुब्ह भी दूर है।।

QATA-रेंग जायेगा बुरा बक्त किसी गाड़ी सा।

             क़ता रेंग जायेगा बुरा बक्त किसी गाड़ी सा। एक ही जगह रहेगा नहीं चक्का ठहरा।। कर तसल्ली दिले नादां न हो मायूस ग़म से।।। जब्त के आगे अजी क्या है समन्दर गहरा।।।।

DOHA-हो जा बाग़ की ऐ चिड़ी,झट से तु होशियार।

              दोहा  हो जा बाग़ की ऐ चिड़ी,झट से तु होशियार। आया तेरि तलाश में,बाग़ में चिड़ीमार।।

QATA-साथ साथी का ज़बरदस्त सहारा भी है।

              क़ता साथ साथी का ज़बरदस्त सहारा भी है। और कुछ खू में बुज़ुर्गो का तज़ुर्बा भी है।। फिर तो जीबन की फंसी नाव भी मैं खे लूंगा।।। पास जब मां की दुआओं का असासा भी है।।।।

Qata-आराम से बो पार सभी को उतारता।

               क़ता आराम से बो पार सभी को उतारता। अल्लाह को जो कल्ब से रोकर पुकारता।। गिर्दाब के करीब बड़े इत्मिनान से।।। कमजोर कश्तियों को भी तिनका सहारता।।

EK MATLA DO SHER-कुचल गया सिर तेरी जफ़ा का।

 एक मतला दो शेर कुचल गया सिर तेरी जफ़ा का। अदा करूं शुक्रिया ख़ुदा का।। उसे नहीं है ज़रा मुहब्बत। जिसे पढ़ाया सबक वफ़ा का।। हबा के रूख पे उड़ाके मय को। अजी हूं मैं मुस्तहिक सजा का।।

RUBAI-किसकी आबाज है मुझे पुकारती।

किसकी आबाज है मुझे पुकारती। मेरे सीेने में दर्द है उतारती।।  क्या सांस का जिस्म से निबा ख़तम हुआ।। क्या मौत से ज़िंदगी है खेल हारती।।।।

RUBAI-आराम से काम सर नहीं होता है

आराम से काम सर नहीं होता है  मुश्किल के बिना गुज़र नहीं होता है  फ़ुटपाथ भी अक्सर नहीं मिलती उन्हें  परदेश में जिनका घर नहीं होता है

RUBAI-बेहोश नहीं हूं मैं दिवाने की तरह।

बेहोश नहीं हूं मैं दिवाने की तरह। समझाओ ना तुम मुझको सियाने की तरह।। बस राज ही क्या तेरी कही बात भी मैं।।। सीने में दफ़न कर लूं ख़जाने की तरह।।।।