RUBAI-है ताड़ रही कब से निगाहे सय्याद।

                 रूबाई -है ताड़ रही कब से निगाहे सय्याद।

है ताड़ रही कब से निगाहे सय्याद।
बो घोसले में फिर भी बैठी है शाद ।।
रहके भी निशाने की पकड़ में बुलबुल।।।
क्यों ख़ुद को समझती है चमन में आज़ाद।।।।

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