पैदल ही जो चल दिये सर पे रख के भार।
थोड़ा उनका भी जरा हुजूर करो बिचार।।
हुजूर करो बिचार छोड़ बातों का लच्छा।
देख देश का हाल करो अब तो कुछ अच्छा।।
फ़ाको ने इस बक़्त बनाया इनको बैकल।
सड़कों पे बेहाल चल रहे हैं जो पैदल।।
ग़ज़ल 11 ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ज़िंदगी ख़ैर यूं ही जीना है रोज़ ब रोज़ ज़हर पीना है زِندَگی خیر یُوں ہی جینا ھے۔ روز بہ روز زھر پینا ھے۔ आदत-ए-गिर्या-ओ-ज़ारी ने तो हिज्र का आह मज़ा छीना है عادت گریہ و زاری نے تو ۔ حجر کا آہ مزہ چھینا ھے۔ क़ैफ़ियत ओज पे है वक़्त-ए-ज़वाल क्यों कि सिरहाने धरी मीना है کَیفِیَت اوج پے ھےوقت زوال ۔ کِیُوں کے سرہانے دَھری مینا ھے۔
ravaa.n-davaa.n dhaar hai nadi ki ग़ज़ल 12 चहार अतराफ़ में जुदा हो रवां दवां धार है नदी की हथेलियों में उठाके कतरे समझ रहा है कि कुछ कमी की कभी नहीं ख़्वेश-परवरी को सियाह बातिल की पैरवी की जहां कहीं बात जब भी की तो क़सम से ईमान की लगी की ख़बीस मौजें हुईं कशाकश हवाओं का रुख सता रहा है हिसार-ए-शोला हुए किनारे ख़तर में है नाव सरबरी की बहुत ही नाराज है जमाना फ़कत हमारी उसी ख़ता पर ख़ता जो छुप कर करे जमाना बही जो हमने खुला खुली की Aamir husain अतराफ़=दिशाएँ रवां दवां =ज़ोर से बहता हुआ ख़्वेश-परवरी =अपने लोगों का पालन पोषण करना बातिल=झूठ ख़बीस =दुष्ट कशाकश=उलझन हिसार-ए-शोला =आग का घेरा सरबरी =पथप्रदर्शक का कार्य, खुला खुली =खुल्लम-खुल्ला
ग़ज़ल 08 GHAZAL=उम्र भर यार से बस हाथ छुड़ाया न गया उम्र भर यार से बस हाथ छुड़ाया न गया इसलिये और कहीं पे जी लगाया न गया//1 पेट की आग बुझाने के लिये हम से कभी। भूल कर शाम को भी रात बताया न गया।।//2 काम तो हम भी बुरे बक़्त में उनके आये। बस कभी हम से बो अहसान जताया न गया।।//3 दिल किसी गुल की तरह आप मसल कर न कहें हम से तो कोई किसी तौर सताया न गया//4
Comments
Post a Comment