GHAZAL-जहां की ऐसी मुझे चाहिये बहार नहीं।
ग़ज़ल
03
जहां की ऐसी मुझे चाहिये बहार नहीं।
किसी भी तौर मिले जिससे जब करार नहीं
रगो की कैद के भीतर लहू रहे न अबस
इसी बजह से चखी नान दाग़दार नहीं
सुरूर जीत का है लाज़िमी उन्हीं के लिये
नबर्द में जो कभी थे फ़रेबकार नहीं
निकल सके तो निकालूं बदन से लहजे में
अक़ूबते ग़मे हस्ती है कोई खार नहीं
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