ravaa.n-davaa.n dhaar hai nadi ki



ravaa.n-davaa.n  dhaar hai nadi ki


ग़ज़ल 12

चहार अतराफ़ ‌ में जुदा हो रवां दवां धार है नदी की
हथेलियों में उठाके कतरे समझ रहा है कि कुछ कमी की


कभी नहीं ख़्वेश-परवरी को सियाह बातिल की पैरवी की
जहां कहीं बात जब भी की तो क़सम से ईमान की लगी की


ख़बीस मौजें हुईं कशाकश हवाओं का रुख सता रहा है
हिसार-ए-शोला हुए किनारे ख़तर में है नाव सरबरी की


बहुत ही नाराज है जमाना फ़कत हमारी उसी ख़ता पर
ख़ता जो छुप कर करे जमाना बही जो हमने खुला खुली की


Aamir husain


अतराफ़=दिशाएँ
रवां दवां =ज़ोर से बहता हुआ
ख़्वेश-परवरी =अपने लोगों का पालन पोषण करना  
बातिल=झूठ
ख़बीस =दुष्ट
कशाकश=उलझन
हिसार-ए-शोला =आग का‌ घेरा
सरबरी =पथप्रदर्शक का कार्य,
खुला खुली =खुल्लम-खुल्ला








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