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GHAZAL=AGHYAR MEIN BAS YUN HI MACHA SHOR NAHIN HAI.अग़यार में बस यूं ही मचा शोर नहीं है।

 ग़ज़ल 10                अग़्यार में बस यूं ही मचा शोर नहीं है। "'''''''''''''''''''''''''''''''''''''"""""""""""'''''''''''''’"""""""''''''''''''''''''''''''''''"''''''''''''''''''''''''' अग़्यार में बस यूं ही मचा शोर नहीं है बो जानते हैं सामने कमज़ोर नहीं है//1 اغیار  میں بس یوں ھی مچا شور نھیں ھے۔ بو جانتیں ہیں سامنے کم زور نھیں ھے۔ कर ख़ैर ख़ुदा चैन किसी तौर नहीं है ज़ुल्मात  हैं हर सिम्त कहीं भोर नहीं है//2 کر خیر خدا چین کسی طور نھیں ھے۔ ظلمات ھیں ھر سمت کھیں بھور نھیں ھے۔ महदू

DOHA

DOHA   

एक मतला एक शेर

एक मतला एक शेर हम कहानी तुम्हें सुनाते क्या नींद से यकबयक जगाते क्या//1 राहवर के यहां दिवाली थी शहर में दीप जगमगाते क्या//2

RUBAI-है ताड़ रही कब से निगाहे सय्याद।

                 रूबाई - है ताड़ रही कब से निगाहे सय्याद। है ताड़ रही कब से निगाहे सय्याद। बो घोसले में फिर भी बैठी है शाद ।। रहके भी निशाने की पकड़ में बुलबुल।।। क्यों ख़ुद को समझती है चमन में आज़ाद।।।।

Ek MATLA EK SHER -बाग़ में हैं बागबां क्या..........

Ek MATLA EK SHER -बाग़ में हैं बागबां क्या.......... बाग़ में हैं बागबां क्या गुल ग़ज़ब के। पत्थरों में भी उठे अरमां तलब के।। हुस्न का दरिया बड़ा ही जोश पे है। हसरतें होंगी नहीं महरूम अब के।।

EK MATLA EK SHER -बह समझ ले ख़ुदी में जो मगरूर है।

Ek MATLA EK SHAR  बह समझ ले ख़ुदी में जो मगरूर है। बह समझ ले ख़ुदी में जो मगरूर है। आह! के सामने हर किला चूर है।। फ़क्त कुछ देर हैं टिमटिमाते दिये। और फिर रात की सुब्ह भी दूर है।।

QATA-रेंग जायेगा बुरा बक्त किसी गाड़ी सा।

             क़ता रेंग जायेगा बुरा बक्त किसी गाड़ी सा। एक ही जगह रहेगा नहीं चक्का ठहरा।। कर तसल्ली दिले नादां न हो मायूस ग़म से।।। जब्त के आगे अजी क्या है समन्दर गहरा।।।।

Qata-आराम से बो पार सभी को उतारता।

               क़ता आराम से बो पार सभी को उतारता। अल्लाह को जो कल्ब से रोकर पुकारता।। गिर्दाब के करीब बड़े इत्मिनान से।।। कमजोर कश्तियों को भी तिनका सहारता।।

EK MATLA DO SHER-कुचल गया सिर तेरी जफ़ा का।

 एक मतला दो शेर कुचल गया सिर तेरी जफ़ा का। अदा करूं शुक्रिया ख़ुदा का।। उसे नहीं है ज़रा मुहब्बत। जिसे पढ़ाया सबक वफ़ा का।। हबा के रूख पे उड़ाके मय को। अजी हूं मैं मुस्तहिक सजा का।।

RUBAI-किसकी आबाज है मुझे पुकारती।

किसकी आबाज है मुझे पुकारती। मेरे सीेने में दर्द है उतारती।।  क्या सांस का जिस्म से निबा ख़तम हुआ।। क्या मौत से ज़िंदगी है खेल हारती।।।।

RUBAI-आराम से काम सर नहीं होता है

आराम से काम सर नहीं होता है  मुश्किल के बिना गुज़र नहीं होता है  फ़ुटपाथ भी अक्सर नहीं मिलती उन्हें  परदेश में जिनका घर नहीं होता है

RUBAI-बेहोश नहीं हूं मैं दिवाने की तरह।

बेहोश नहीं हूं मैं दिवाने की तरह। समझाओ ना तुम मुझको सियाने की तरह।। बस राज ही क्या तेरी कही बात भी मैं।।। सीने में दफ़न कर लूं ख़जाने की तरह।।।।