GHAZAL- कहीं पे ठहरना कहीं से गुज़रना।
ग़ज़ल
01
कहीं पे ठहरना कहीं से गुज़रना।
कहीं पे ठहरना कहीं से गुज़रना
मगर मन्ज़िलें सब मुकम्मल ही करना
सज़ा ख़ुदकुशी की बड़ी सख़्त पायी
गया ज़िन्दगी से हुआ ख़ाक मरना
जमा क्या करोगे इन्हें शीशियों में
कि है ख़ुशबुओं का मुकद्दर बिखरना
इलाही बुरा क्यों लगे दुश्मनों को
सुबह शाम मेरे शहर का संवरना
कि पामाल करके सभी बन्दिशों को
नदी को समन्दर में अब है उतरना
https://youtu.be/4n2V1NvCIWs
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