ज़िहाफ़: तय्य (طیی)

                      ज़िहाफ़: तय्य (طیی)

                                     
        तय्य (طیی) उस ज़िहाफ़ को कहते हैं जो रुक्न कै चौथे स्थान के हर्फ़े साकिन को गिराने के लिये लगाया जाता है चौथे स्थान पर साकिन उन अरकान में आता है जिनके प्रारम्भ में दो असबाबे ख़फ़ीफ़ लगातार आते हैं।जैसे :-
मस तफ़ इ लुन(مستفعلن) में मस(مس)और तफ़(تف) लगातार दो असबाबे ख़फ़ीफ़ आ रहे हैं तो ऐसी सूरत में तफ़ (تف) के फ़े(ف) को गिराने का काम करेगा।
     निम्नलिखित अरकान के प्रारम्भ में दो असबाबे ख़फ़ीफ़ लगातार आते हैं :-
मस तफ़ इ लुन(مستفعلن)
मफ़ ऊ ला तु(مفعولات)
   अगर रुक्न  मस तफ़ इ लुन(مستفعلن) के दूसरे सबबे  ख़फ़ीफ़ के तफ़ (تف) में से फ़े(ف) को गिरा दें तो शेष बचता है मस त इ लुन [2112] (مستعلن)इसे मुफ़ त इ लुन [2112](مفتعلن)से बदल लिया।
   अगर रुक्न मफ़ ऊ ला तु(مفعولات)के दूसरे सबबे  ख़फ़ीफ़ के ऊ(عو)के वाव(و) को गिरा दें तो शेष बचता है मफ़ इ ला तु[2121](مفعلات) इसे फ़ा इ ला तु[2121](فاعلات) से बदल लिया।
    मुज़ाहिफ़ को मुतव्वी(مطووی) कहते हैं।
  नोट-फ़ा इ ला तु[2121](فاعلات)में तु(ت)मुतहर्रिक है।

Comments

Popular posts from this blog

ravaa.n-davaa.n dhaar hai nadi ki

GHAZAL-जहां की ऐसी मुझे चाहिये बहार नहीं।

GHAZAL =Jise bhi hamne shabista ka razdaar kiya.