GHAZAL=अपनी बैचेनियों में किसे मैं पुकारता।

                  ग़ज़ल
                    05

GHAZAL=अपनी बैचेनियों में किसे मैं पुकारता।


अपनी बैचेनियों में किसे मैं पुकारता
हां इसलिए मैं तुमसे रहा खेल हारता


गर बक़्त साथ होता बड़े इत्मिनान से 
मैं मुन्तशिर ये केश तुम्हारे संवारता


रंजीदगी गले में पहन हार की तरह 
गुज़रा हूं ज़िन्दगी से जवानी गुजारता


अंजाम से बेफ़िक्र मेरा इश्क़ लो मुझे
आंखों की झील में है डुबोता उभारता

मुन्तशिर= बिखरी हुई
रंजीदगी= दुख

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