GHAZAL-बे सबब हाजतें ठीक लगतीं नहीं

                  ग़ज़ल

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 बे सबब हाजतें ठीक लगतीं नहीं        


बे सबब हाजतें ठीक लगतीं नहीं
बेहमीयत लतें ठीक लगतीं नहीं


कुछ मरासिम बतन से भी यारो रखो
मुल्क से फ़ुरकतें ठीक लगतीं नहीं


क्यों है हर शख्स दिलगीर इस शहर में
लोगो की तबियतें ठीक लगतीं नहीं


दिल भुलाया उसे जो हसीं ख़ास थी
बस यही आदतें ठीक लगतीं नहीं


हमनशीं तेरी ये बेहया बेवफ़ा 
बेमजा चाहतें ठीक लगतीं नहीं

बेहमीयत=निर्लज्ज
मरासिस=संबंध
हाजत=जरूरत


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