GHAZAL=दुनिया के किसी दर्द से दो चार नहीं हूं

                    ग़ज़ल
                     07

दुनिया के किसी दर्द से दो चार नहीं हूं



दुनिया के किसी दर्द से दो चार नहीं हूं
जब से मैं किसी तौर तेरा यार नहीं हूं//1


इन्सान हूं इन्सान से बरताब भी बरतो
गुज़री हुई तारीख़ का अख़बार नहीं हूं//2


मख़्लूक़ सताने से मुझे बाज़ जरा आ
दरबार में फ़रियाद से लाचार नहीं हूं//3


इस जीस्त की ख़ातिर तेरा दीदार ग़िज़ा है
सूरत का तलबगार हूं बीमार नहीं हूं//4


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