GHAZAL =Jise bhi hamne shabista ka razdaar kiya.

ग़ज़ल
09

जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया

                 


जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया
उसी ने ढोल बजा राज़ आशक़ार किया

किसी को इश्क़ में हासिल हुए मुकाम बहुत
किसी को तन की हवस ने गुनाहगार किया

मना न यार ख़ुशामद से या क़सम से फिर
कि छेड़ में जो ख़फ़ा हमने एक बार किया

निज़ामे दह्र की ख़ातिर ख़ुदा ने भी यारों
कोई ग़रीब रखा कोई मालदार किया

इसी ख़याल से सहता रहूं दुखों को मैं
बुरा किया किसी ने जो यहां पे प्यार किया



स्वरचित:
AMIR HUSAIN
BAREILLY (UTTAR PRADESH)

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