GHAZAL =Jise bhi hamne shabista ka razdaar kiya.
ग़ज़ल
09
जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया
उसी ने ढोल बजा राज़ आशक़ार किया//1
किसी को इश्क़ में हासिल हुए मुकाम बहुत
किसी को तन की हवस ने गुनाहगार किया//2
मना न यार ख़ुशामद से या क़सम से फिर
कि छेड़ में जो ख़फ़ा हमने एक बार किया//3
निज़ामे दह्र की ख़ातिर ख़ुदा ने भी यारों
कोई ग़रीब रखा कोई मालदार किया//4
इसी ख़याल से सहता रहूं दुखों को मैं
बुरा किया किसी ने जो यहां पे प्यार किया//5
स्वरचित:
AMIR HUSAIN
BAREILLY (UTTAR PRADESH)
09
जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया
जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया
उसी ने ढोल बजा राज़ आशक़ार किया//1
किसी को इश्क़ में हासिल हुए मुकाम बहुत
किसी को तन की हवस ने गुनाहगार किया//2
मना न यार ख़ुशामद से या क़सम से फिर
कि छेड़ में जो ख़फ़ा हमने एक बार किया//3
निज़ामे दह्र की ख़ातिर ख़ुदा ने भी यारों
कोई ग़रीब रखा कोई मालदार किया//4
इसी ख़याल से सहता रहूं दुखों को मैं
बुरा किया किसी ने जो यहां पे प्यार किया//5
स्वरचित:
AMIR HUSAIN
BAREILLY (UTTAR PRADESH)
Bahut behatreen
ReplyDeleteThank
DeleteGood
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