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GHAZAL=AGHYAR MEIN BAS YUN HI MACHA SHOR NAHIN HAI.अग़यार में बस यूं ही मचा शोर नहीं है।

 ग़ज़ल 10                अग़्यार में बस यूं ही मचा शोर नहीं है। "'''''''''''''''''''''''''''''''''''''"""""""""""'''''''''''''’"""""""''''''''''''''''''''''''''''"''''''''''''''''''''''''' अग़्यार में बस यूं ही मचा शोर नहीं है बो जानते हैं सामने कमज़ोर नहीं है//1 اغیار  میں بس یوں ھی مچا شور نھیں ھے۔ بو جانتیں ہیں سامنے کم زور نھیں ھے۔ कर ख़ैर ख़ुदा चैन किसी तौर नहीं है ज़ुल्मात  हैं हर सिम्त कहीं भोर नहीं है//2 کر خیر خدا چین کسی طور نھیں ھے۔ ظلمات ھیں ھر سمت کھیں بھور نھیں ھے۔ महदू

DOHA

DOHA   

EK SHER

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DOHA =दोहा

 दोह                            11 आप कहें दिन दिन कहें आप कहें तो रात। राजा जी के सामने किसी की क्या औकात।।

GHAZAL =Jise bhi hamne shabista ka razdaar kiya.

ग़ज़ल 09 जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया                   जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया उसी ने ढोल बजा राज़ आशक़ार किया//1 किसी को इश्क़ में हासिल हुए मुकाम बहुत किसी को तन की हवस ने गुनाहगार किया//2 मना न यार ख़ुशामद से या क़सम से फिर कि छेड़ में जो ख़फ़ा हमने एक बार किया//3 निज़ामे दह्र की ख़ातिर ख़ुदा ने भी यारों कोई ग़रीब रखा कोई मालदार किया//4 इसी ख़याल से सहता रहूं दुखों को मैं बुरा किया किसी ने जो यहां पे प्यार किया//5 स्वरचित: AMIR HUSAIN BAREILLY (UTTAR PRADESH)

एक मतला एक शेर

एक मतला एक शेर हम कहानी तुम्हें सुनाते क्या नींद से यकबयक जगाते क्या//1 राहवर के यहां दिवाली थी शहर में दीप जगमगाते क्या//2

ज़िहाफ़: तय्य (طیی)

                      ज़िहाफ़: तय्य (طیی)                                               तय्य (طیی) उस ज़िहाफ़ को कहते हैं जो रुक्न कै चौथे स्थान के हर्फ़े साकिन को गिराने के लिये लगाया जाता है चौथे स्थान पर साकिन उन अरकान में आता है जिनके प्रारम्भ में दो असबाबे ख़फ़ीफ़ लगातार आते हैं।जैसे :- मस तफ़ इ लुन(مستفعلن) में मस(مس)और तफ़(تف) लगातार दो असबाबे ख़फ़ीफ़ आ रहे हैं तो ऐसी सूरत में तफ़ (تف) के फ़े(ف) को गिराने का काम करेगा।      निम्नलिखित अरकान के प्रारम्भ में दो असबाबे ख़फ़ीफ़ लगातार आते हैं :- मस तफ़ इ लुन(مستفعلن) मफ़ ऊ ला तु(مفعولات)    अगर रुक्न  मस तफ़ इ लुन(مستفعلن) के दूसरे सबबे  ख़फ़ीफ़ के तफ़ (تف) में से फ़े(ف) को गिरा दें तो शेष बचता है मस त इ लुन [2112] (مستعلن)इसे मुफ़ त इ लुन [2112](مفتعلن)से बदल लिया।    अगर रुक्न मफ़ ऊ ला तु(مفعولات)के दूसरे सबबे  ख़फ़ीफ़ के ऊ(عو)के वाव(و) को गिरा दें तो शेष बचता है मफ़ इ ला तु[2121](مفعلات) इसे फ़ा इ ला तु[2121](فاعلات) से बदल लिया।     मुज़ाहिफ़ को मुतव्वी(مطووی) कहते हैं।   नोट-फ़ा इ ला तु[2121](فاعلات)में तु(ت)मुतहर्रिक है।