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ravaa.n-davaa.n dhaar hai nadi ki

ravaa.n-davaa.n  dhaar hai nadi ki ग़ज़ल 12 चहार अतराफ़ ‌ में जुदा हो रवां दवां धार है नदी की हथेलियों में उठाके कतरे समझ रहा है कि कुछ कमी की कभी नहीं ख़्वेश-परवरी को सियाह बातिल की पैरवी की जहां कहीं बात जब भी की तो क़सम से ईमान की लगी की ख़बीस मौजें हुईं कशाकश हवाओं का रुख सता रहा है हिसार-ए-शोला हुए किनारे ख़तर में है नाव सरबरी की बहुत ही नाराज है जमाना फ़कत हमारी उसी ख़ता पर ख़ता जो छुप कर करे जमाना बही जो हमने खुला खुली की Aamir husain अतराफ़=दिशाएँ रवां दवां =ज़ोर से बहता हुआ ख़्वेश-परवरी =अपने लोगों का पालन पोषण करना   बातिल=झूठ ख़बीस =दुष्ट कशाकश=उलझन हिसार-ए-शोला =आग का‌ घेरा सरबरी =पथप्रदर्शक का कार्य, खुला खुली =खुल्लम-खुल्ला

ज़िंदगी ख़ैर यूं ही जीना है रोज़ ब रोज़ ज़हर पीना है

 ग़ज़ल 11 ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ज़िंदगी ख़ैर यूं ही जीना है रोज़ ब रोज़ ज़हर पीना है  زِندَگی خیر یُوں ہی جینا ھے۔ روز بہ روز زھر پینا ھے۔ आदत-ए-गिर्या-ओ-ज़ारी ने तो हिज्र का आह मज़ा छीना है  عادت گریہ و زاری نے تو ۔ حجر کا آہ  مزہ چھینا ھے۔ क़ैफ़ियत ओज पे है वक़्त-ए-ज़वाल क्यों कि सिरहाने धरी मीना है کَیفِیَت اوج پے ھےوقت زوال ۔ کِیُوں کے سرہانے دَھری مینا ھے۔

GHAZAL=AGHYAR MEIN BAS YUN HI MACHA SHOR NAHIN HAI.अग़यार में बस यूं ही मचा शोर नहीं है।

 ग़ज़ल 10                अग़्यार में बस यूं ही मचा शोर नहीं है। "'''''''''''''''''''''''''''''''''''''"""""""""""'''''''''''''’"""""""''''''''''''''''''''''''''''"''''''''''''''''''''''''' अग़्यार में बस यूं ही मचा शोर नहीं है बो जानते हैं सामने कमज़ोर नहीं है//1 اغیار  میں بس یوں ھی مچا شور نھیں ھے۔ بو جانتیں ہیں سامنے کم زور نھیں ھے۔ कर ख़ैर ख़ुदा चैन किसी तौर नहीं है ज़ुल्मात  हैं हर सिम्त कहीं भोर नहीं है//2 کر خیر خدا چین کسی طور نھیں ھے۔ ظلمات ھیں ھر سمت کھیں بھور نھیں ھے۔ महदू

DOHA

DOHA   

EK SHER

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DOHA =दोहा

 दोह                            11 आप कहें दिन दिन कहें आप कहें तो रात। राजा जी के सामने किसी की क्या औकात।।

GHAZAL =Jise bhi hamne shabista ka razdaar kiya.

ग़ज़ल 09 जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया                   जिसे भी हमने शबिस्तां का राज़दार किया उसी ने ढोल बजा राज़ आशक़ार किया//1 किसी को इश्क़ में हासिल हुए मुकाम बहुत किसी को तन की हवस ने गुनाहगार किया//2 मना न यार ख़ुशामद से या क़सम से फिर कि छेड़ में जो ख़फ़ा हमने एक बार किया//3 निज़ामे दह्र की ख़ातिर ख़ुदा ने भी यारों कोई ग़रीब रखा कोई मालदार किया//4 इसी ख़याल से सहता रहूं दुखों को मैं बुरा किया किसी ने जो यहां पे प्यार किया//5 स्वरचित: AMIR HUSAIN BAREILLY (UTTAR PRADESH)